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वोटरों की अदालत में खड़े हैं एनडीए और इंडिया के प्रत्याशी!

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लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग हो चुकी है तथा 88 सीटों पर दूसरे चरण की वोटिंग आज सम्पन्न हो रही है। मौजूदा वक्त में वोटर इतने जागरूक हो चुके हैं कि वे उन्हीं सियासी पार्टियों के प्रत्याशियों को जिताकर संसद भेजेंगे, जिनके कार्यकाल में मुल्क ने विकास की बुलंदियों को छुआ है। पब्लिक यह अच्छी तरह से समझ चुकी है कि सिर्फ बातें करने और मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की घोषणा करने से मुल्क का भला नहीं होने वाला। उसकी तरक्की के लिए कड़ी मेहनत, पक्का इरादा और दूरदर्शिता का परिचय देना पड़ता है। लोकसभा चुनाव में विपक्षी सियासी पार्टियों ने प्रचार के दौरान पब्लिक के सामने सत्ता पक्ष को निशाने पर रखकर अपने घोषणा पत्रों को पेश किया है। अब देखना यह है कि पांच साल में क्या परिवर्तन आया है और विपक्ष कहां है। पिछले लोकसभा चुनाव में कोई मुकाबला ही नहीं था। उसमें मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने बुरी तरह हार का सामना किया। 2014 से लोकसभा चुनाव का सारा गणित बदल कर रख दिया है। सन् 2014 में पहले नंबर पर रही भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए को तीसरे टर्म में भी अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखते हुए जीत की भारी उम्मीद है। सत्तारूढ़ दल के हिसाब से इस बार का मुकाबला दो दलीय नहीं है, क्योंकि भाजपा ही 400 पार का नारा दे रही है। तमाम योजनाओं के बाद विपक्षी गठबंधन ताल ठोकने में नाकामयाब साबित हुए हैं।

प्रत्याशियों की सबसे बड़ी कसौटी कर्मठता, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की पहचान है। यह मतदान करने की पहली सीढ़ी है।। ईवीएम का बटन दबाते वक्त वोटरों को ईमानदारी और ईमानदार शख्सियत की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना चाहिए।
करप्शन के खिलाफ मौजूदा सरकार की मुहिम से लोक जागरूकता आई है। अरबों रुपये के घोटाले पिछली सरकारों में हुए है। जबकि इस सरकार के नुमाइन्दों में दस वर्षों में करप्शन का कोई भी का केस नहीं है। अनीति और अत्याचार के खिलाफ जनजागृति अभियान चलाने के बाद देश मे काफी बदलाव देखने को मिला है। लोग साफ छवि वाले नेताओं को वोट देना पसंद करते हैं। कहना गलत न होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने लोकसभा चुनाव में लोक जागरण का काम किया है। इन लोगों की साफ सुथरी छवि है।

इस बार बड़ी संख्या में युवा वोटर भी बढ़चढ़कर वोटिंग कर हैं। इनमें युवतियों की संख्या अधिक है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की भाजपा की मुहिम से प्रेरित होकर युवतियों का इस पार्टी से खास तौर से जुड़ाव देखने को मिल रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि इस चुनाव में लोक जागरण का काम जोर से हुआ है। हर दल कौम और मजहब के नाम पर चुनाव जीतने की जुगत में है। मुल्क की पब्लिक को अपने पाले में करने के लिए नित नए प्रयोग किये जा रहे है।

चुनाव के इस दौर में विरोधी पक्ष पर अटैक करना मुख्यतया सियासत की परिपाटी बन गई है। वेस्ट बंगाल के संदेश खाली में हुए घटनाक्रम पर सूबे की मुख्यमंत्री ममता पर्दा डालना चाहती थीं, लेकिन सीबीआई ने पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की ठान ही ली । ममता सियासी प्लेयर हैं और वेस्ट बंगाल जब जल रहा था। उस वक्त ममता सियासत का खेल खेल रही थीं। कई बार सूबे में अशांति की खबरे अखबारों में पढ़ने को मिलती थीं, लेकिन टीएमसी की मुखिया अपनी कुर्सी बचाने के फेर में तुष्टिकरण को हवा दे रही थीं। 55 साल तक देश में राज करने वाली करप्शन व घोटालों के तमाम आरोपों से घिरी मुल्क की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हालत इस चुनाव में काफी पतली नजर आ रही है। इस पार्टी में इस वक्त दूरदर्शी नेतृत्व का अभाव साफ झलक रहा है। फिलहाल वोटरों को तय करना है कि यदि मुल्क को तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते देखना है ​तो वह पीएम मोदी के हाथ मजबूत करे अथवा विपक्षी गठबंधन इंडिया के प्रत्याशियों को जीत का स्वाद चखने दे। चार जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे एक बार फिर मुल्क की किस्मत का फैसला करेंगे।


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